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बड़ी संख्या में फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर सरकारी नौकरी पाने वाले अधिकारी-कर्मचारी बदस्तूर कर रहे नौकरी, उच्च स्तरीय जांच पूरी होने के बाद भी नहीं की गई इन्हें पद से हटाने की कार्यवाही |


भोपाल : 01/08/2024 : प्रदेशभर में 10 हज़ार से अधिक लोग ऐसे हैं जो फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर सरकारी नौकरी हासिल करके अपनी अपनी जगह आज भी डटे हुए हैं | फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नौकरी पाने वाले अधिकारी-कर्मचारी बदस्तूर अपनी नौकरी पूरी कर रिटायर भी हो गए हैं, लेकिन आज तक इन अधिकारियों कर्मचारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई है | इनमें अधिकांश की जांच उच्च स्तरीय छानबीन समिति के पास लंबित है, जिन मामलों में जाँचे पूरी हो चुकी हैं उन पर भी विभागीय स्तर से कोई कार्यवाही नहीं हो रही है | विभागीय अधिकारी इन्हें न तो नौकरी से हटा पा रहे हैं और न ही फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर अर्जित किए गए लाभ की वसूली करा रहे हैं | जबकि ऐसे अधिकारियों के खिलाफ विभागीय स्तर से तो 11 साल पहले पुलिस थाने में एफआईआर के लिए पत्र लिखा जा चुका है | लेकिन उन्हें पद से हटाने की कार्यवाही आज तक नहीं हुई | ऐसे अफसरों से वसूली की बात तो भूल ही जाइए | एक मामला जहां मप्र विज्ञान एवं प्रौद्दोगिकी परिषद का है, तो वहीं 8 मामले हथकरघा विभाग से जुड़े हैं | इनमें एक पर भी कोई एक्शन नही लिया गया बल्कि विभागीय अधिकारियों की ओर से मामले को लंबे समय से दबाया जा रहा है | फर्जी जाति प्रमाण पत्र के दो चर्चित मामलों में सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग है | पहला माधुरी पाटिल बनाम एडिशनल कमिश्नर ट्राइबल डिपार्टमेंट महाराष्ट्र और दूसरा डाइरेक्टर ट्राइबल वेल्फेयर आंध्रप्रदेश बनाम लावेदी गिरी | इसमें कहा गया है कि यदि उच्च स्तरीय छानबीन समिति जाति प्रमाण पत्र को फर्जी पाती है तो आरोपी को नियोक्ता सीधे बर्खास्त कर सकता है | संबंधित कर्मचारी के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज कर कार्यवाही की जाए | छानबीन समिति के सामने जो भी मामले आते हैं उनकी जांच के लिए प्रक्रिया निर्धारित है | जांच के दौरान विभिन्न माध्यमों से संबंधित प्रकरण के लिए जानकारी एकत्रित की जाती है | जिसके आधार पर प्रकरण का निराकरण किया जाता है | जांच समिति तो अपना निर्णय दे देती है, दोषियों पर कार्यवाही करने का अधिकार संबंधित विभाग प्रमुख को ही है |

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