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छात्र – छात्राओ की आत्महत्या रोकने के लिए सिस्टम फेल सर्वोच्च अदालत ने बनाई नई गाडलाइन्स


भोपाल ( कशिश मालवीय )सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों की आत्महत्या को देश की शिक्षा व्यवस्था को नाकाम बताया | कोर्ट ने कहा छात्रों की लगातार मौतें अक्सर ऐसी वजहों से होती हैं जिन्हें रोका जा सकता है | यह इस बात का  सबूत हैं कि हमने मानसिक स्वास्थ्य , अकादमित दबाव सामाजिक कलंक और संस्थागत संवेदनहीनता जैसे पहलुओं को नजरअंदाज किया है | अब इस संकट को और अनदेखा नहीं किया जा सकता |

जस्टिस विक्रम नाथ व जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने आंध्र प्रदेश की 17 वर्षीय नीट चतरा की संदिग्ध मौत के मामले में सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की | इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई | पीठ ने देशभर के शिक्षण संस्थानों के लिए 15 दिशा – निर्देश जारी किए | कोर्ट ने कहा जब तक संसद या राज्यों की विधानसभा इस पर कानून नहीं बनतीं ये गाइडलाइंस देशभर के लिए बाध्यकारी होंगी | कोर्ट ने राज्यों को दो माह में कोचिंग सेंटरों के पंजीकरण और शिकायत निवारण पर अधिसूचना जारी करने था हर जिले में डीएम की अध्यक्षता में निगरानी समिति बनाने का भी निर्देश दिया है | पीठ ने मानसिक स्वास्थ्य को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के हक का अभिन्न अंग बताया | कहा , हर संस्था की जिम्मेदारी है कि मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करे |

हर शिक्षण संस्थान में मानसिक स्वास्थ्य नीति और विशेषज्ञ नियुक्त हों ; स्टूडेंट के प्रदर्शन के आधार पर बैच न बनाए जाएं सभी शिक्षण संस्थानों को उम्मीद मनोदर्पण और राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम नीति पर आधारित मानसिक स्वास्थ्य नीति अपनानी होगी | हर साल अपडेट कर वेबसाइट व सूचना बोर्ड पर लगाना होगा | जहां 100 से अधिक छात्र हों , वहां प्रशिक्षित काउंसलर, मनोवैज्ञानिक या सोशल वर्कर नियुक्त हो छोटे संस्थान बाहरी विशेषज्ञों से जुड़ें | परीक्षा या कोर्स बदलाव के  समय हर छात्र समूह को एक मेंटर या काउंसलर, दिया जाए | कोचिंग संस्थान प्रदर्शन के आधार पर बैच न बनाएं और न ही छात्रों को शर्मिंदा करें | शिक्षण संस्थानों मेँ मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं अस्पतालों और हेल्पलाइन से संपर्क की व्यवस्था हो हेल्पलाइन नंबर प्रमुखता से प्रदर्शित हों | संस्थान सभी शिक्षकों व स्टाफ को साल में दो बार मेंटल हेल्थ और आत्महत्या संकेतों की ट्रेनिंग दें | कमजोर वर्गों जैसे – एससी , एसटी , ओबीसी , ईडब्ल्यूएस , एलजीबिटिक्यू + विकलांग , अनाथ या मानसिक संकट से जूझ रहे छात्रों से भेदभाव न हो | यौन उत्पीड़न , रैगिंग और भेदभाव के मामलों में कार्रवाई के लिए समिति बने , पीड़ित को सहायता और सुरक्षा मिले | अभिभावकों के लिए जागरुकता कार्यकम हों ताकि वे तनाव पहचानें और दबाव न डालें संस्थान हर साल रिपोर्ट बनाएं , जिसमें काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य का विवरण हो | इसे यूजीसी जैसे नियामक संस्था को भेजा जाए | पाठयक्रम के साथ खेल कला और व्यक्तित्व विकास पर ध्यान हो और परीक्षा प्रणाली छात्र हिट मे हो

कोर्ट ने दिशा निर्देश जारी करने के बाद केंद्र से 90 दिनों मे हलफ नामा भी मांगा है।

 

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