भोपाल(सैफुद्दीन सैफ़ी)
कॅरोना काल मे जहाँ नियम कायदों को ताक में रख कर गली गली कुकरमुत्तों की तरह निजी अस्पतालों को खोलने की अनुमति दी गयी वहीं राजधानी में ब्लड बैंकों की दुकानें खुल गई है।जबकि पुराने खुले हुए ब्लड बैंक ही मरीजो का खून चूसने के लिए पर्याप्त थे।
गौर तलब है कि राजधानी में खुले ब्लड बैंकों पर लगता है सरकार की किसी एजेंसी का कोई शिंकजा नही है। ये खुले आम बड़े निजी अस्पतालों से साठगांठ कर मरीजो की मजबूरी का फायदा उठा रहे है और लाखों के बारे न्यारे हर महीने कर रहे है। कोई एजेंसी इनके कार्यकलाप पर नजर नही रखे हुए है।
इन दिनों कई ब्लड बैंक मंत्री और अफसरों को विश्वाश में लेकर कोई समाजिक समारोह के नाम पर अनुमति प्राप्त कर ब्लड डोनेशन केम्प का आयोजन कर ब्लड दान करने वालो से हजारों यूनिट ब्लड ले लेते है और फिर इनको बड़े अस्पतालो में भर्ती सीरियस मरीजो को जिनको ब्लड की आवश्यकता होती है ऊंचे दामो पर बेच कर मोटी रकम हड़प लेते है। दूसरा सबसे अचंभे की बात ये है कि कई ब्लड बैंक संचालक खुद दिन भर ब्लड बैंक में बैठते भी नही पूरा जिम्मा ब्लड बैंक में कार्यरत टेक्नीशियन या नर्सों के हवाले रहता है। पुराने भोपाल में तो एक सबसे पुराने ब्लड बैंक के संचालक ने इन दिनों ब्लड बैंक में बैठना ही छोड़ दिया है। उनकी पत्नी ने ही ब्लड वेंक का जिम्मा संभला हुआ है। जो कुछ घंटों के लिए आती है और डेली कमाई पर्स में रख रवाना हो जाती है।
एक खबर ये भी मिल रही है कि कुछ ड्रग एडिक्ट भीख मांगने वाले या दिमागी रूप से बीमार लोगो का ब्लड भी कुछ ब्लड बैंक में ले लिया जाता है उन्हें कुछ पैसे देकर और ये ब्लड अस्पतालो में बेचा जाता है ।अगर ऐसा हो रहा है तो जनस्वास्थ के लिए ये कभी गंभीर मामला बन सकता है। समय रहते राज्य सरकार और रेडक्रॉस को इसकी गहरी छानबीन करनी चाहिए।