लोकतंत्र में सरकार जनता द्वारा जनता के लिये जनता का शासन कहा जाता है।सरकार व्यवस्था चलाने और बनाये रखने के लिए प्रशासनिक तंत्र को नियुक्त करती है। मगर लोकतंत्र जिसमे जनता को सर्वोपरि माना गया है उसका दुर्भाग्य और मजबूरी देखिये की प्रशासन में बिठाए अफसरों को न तो जनता से मिलने का समय है न जनता के लिए कोई व्यवस्था बनाने की चिंता अफसरों के पास सिर्फ जनता के लिए सुबह दोपहर शाम मीटिंग करने के नाम पर अपने को व्यस्त या ये कहे कि जनता से पीछा छुड़ाने का बहाना है। ये जो अफसर 11 से 5 तक मीटिंगों में व्यस्त रहने का जो नाटक या दिखावा करते है, ये दरअसल मीटिंग नही सेटिंग जमाने की कवायत होती है। और ऐसे ही दिखावटी मीटिंगों में 11 से 5 भोपाल में जनता के दुर्भाग्य से पदस्थ सी एच एम ओ प्रभाकर तिवारी है। जिनसे मिलने के लिए रोज भोपाल की जनता जन प्रतिनिधि पत्रकार इनके कार्यलय पर रोज दस्तक देते है, इनके स्टाफ का एक ही जवाब होता है। साहब मीटिंग में कब आएंगे पता नही साहब को एक फोन लगाओ तो ये उठाते नही दो तीन बार लगातार करो तो तेज आवाज में जवाब मिलता है, मीटिंग में हूँ बाद में बात करता हूँ। और ये बाद में कभी होता नही हालांकि प्रदेश के मुखिया मोहन यादव के सभी अधिकारियों को स्पष्ठ निर्देश है कि, वो जनता और जन प्रतिनिधियों के फोन तुरंत उठाये या बाद में कॉल बेक करें मगर तिवारी की पीठ पर सर पर न जाने कौनसा मजबूत हाथ है, जो ये न तो जनता से मिलना गवारा करते है और न ही प्रदेश के मुख्यमंत्री जी के आदेशों का पालन करने की इन्हें फिक्र है। जय हो ऐसे लोकतंत्र की
