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दिग्गज कारोबारी रतन टाटा के निधन से मुंबई शहर में फैला मातम |


मुंबई : 11/10/2024 : दिग्गज कारोबारी रतन टाटा के निधन से उद्दोग जगत और देश दोनों के लिए एक युग का अंत हो गया भारत ने अपने सबसे प्रिय रत्नों में से एक को खो दिया | रतन टाटा का अंतिम संस्कार गुरुवार को मुंबई के वर्ली विद्दुत शवदाह गृह में राजकीय सम्मान के साथ किया गया | उनको अंतिम विदाई देने दिग्गज राजनीतिज्ञ, शीर्ष उद्दोगपति, अभिनेता और बड़े खिलाड़ियों सहित हजारों आमजन पहुंचे | रतन टाटा की अंतिम यात्रा में सबसे आगे उनके युवा असिस्टेंट रहे शांतनु नायडू बाइक पर शव यात्रा के आगे-आगे चल रहे थे | उद्दोग जगत के क्षेत्र में नाम कमाने वाले रतन  टाटा एक विजनरी लीडर थे, जीवन बेहतर बनाने के लिए उनके समर्पण ने दुनिया पर अमिट छाप छोड़ी | उन्होने जो उदाहरण पेश किया वह पीढ़ियों को प्रेरित करता है | एक उद्दोगपति के रूप में उनके परोपकार और योगदान ने अनगिनत लोगों का जीवन बेहतर बनाया | उनकी विरासत भावी पीढ़ियों को ईमानदारी के साथ सफल होने के लिए प्रेरित करेगी | रतन टाटा एक सच्चे निर्माता थे, वह भारतीय उद्दोग और जिस दुनिया में हम रहते हैं उसे बेहतर बनाने के लिए हमेशा उत्साहित रहे | रतन टाटा जैसे लोग इस दुनिया में मिलना बहुत मुश्किल है | उनके निधन से मुंबई शहर में मातम का माहौल है, हर घर को ऐसा महसूस हो रहा है जैसे कोई अपना चला गया हो | जब रतन टाटा 10 वर्ष के थे तब उनके माता-पिता एक दूसरे से अलग हो गए, दादी के साथ पले बढ़े रतन ने इन भावनात्मक कठिनाइयों को खुद पर हावी नहीं होने दिया | जब वह कंपनी प्रमुख बने तो वो अपने गुरु जेआरडी के केबिन में नहीं बैठे उन्होने अपने लिए एक साधारण सा छोटा कमरा बनवाया उनका मानना था कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता बल्कि हमें इसे दिल से खुशी और समर्पण से करना चाहिए | जब वे विदेश में पढ़ते थे तो घर से पैसा नहीं आने पर काम भी करते थे यहाँ तक कि उन्होने रेस्त्रां में बर्तन भी साफ किए | रतन टाटा परिणामों की परवाह किए बिना हमेशा सही काम करने के लिए प्रतिबद्ध रहे | आज से 18 साल पहले रतन टाटा संस्कार वैली स्कूल के उद्घाटन समारोह के लिए भोपाल आए थे | भारतीय कारोबार को वैश्विक मानचित्र पर लाने में उनकी भूमिका हमेशा यादों में रहेगी | 1991 से 2012 तक उनके चेयरमैन रहे टाटा समूह में आमूलचूल बदलाव आया | यही दौर था जब टाटा ग्रुप ने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में साहसिक कदम बढ़ाया | जब रतन टाटा ने पद संभाला तब भारतीय कारोबार बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा था, भारत दुनिया के लिए अपने दरवाजे खोल रहा था | उन्होने माना था कि कंपनियों को कारोबार करने के पारंपरिक तरीके से परे जाने की जरूरत है | उन्होने रचनात्मक संस्कृति को बढ़ावा दिया और समूह की कंपनियों को स्थापित मापदंडों से परे सोचने के लिए प्रोत्साहित किया | स्टील-ऑटोमोबाइल जैसे उद्दोगों में उन्नत तकनीक, टिकाऊपन और सुरक्षा टाटा का गोल्ड स्टैंडर्ड बना | एक बार उन्होने कहा था कि लोहे को उसके जंग के सिवा और कोई नष्ट नहीं कर सकता इसी तरह किसी व्यक्ति को उसकी मानसिकता के सिवा और कोई नष्ट नहीं कर सकता | रतन टाटा के निधन के बाद अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा ? अविवाहित रतन टाटा के उत्तराधिकारी की तस्वीर साफ नहीं है, उनकी जगह परिवार से कोई लेगा या प्रोफेशनल इस पर निगाह है | टाटा के सगे छोटे भाई जीमीं हैं, लेकिन वह 83 वर्ष के हैं | फिर मजबूत दावेदार 67 के नोएल टाटा हैं उनके बच्चे 39 वर्षीय लीया, 34 वर्षीय माया और 32 वर्षीय नेविल भी दावेदारों में शामिल हैं |

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