नई दिल्ली बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन पर नियंत्रण की कोशिशों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा किया है | कोर्ट ने पूछा कि अखिर राज्य सरकार को इतनी हड़बड़ी क्यों है और क्यों उसने गुपचुप तरीके से मंदिर के फंड के इस्तेमाल की अनुमति ली ?
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मंदिर के सेवायातों की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह सवाल उठाया | राज्य सरकार ने 15 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट से दीवानी वाद के जरिए मंदिर फंड से आसपास की जमीन खरीदने की अनुमति ली , पर मंदिर प्रबंधन पक्ष को इसकी जानकारी नहीं दी गई | कोर्ट ने कहा , मंदिर का कोई केस कोर्ट में नहीं था , फिर भी राज्य ने गुप्त तरीके से आदेश हासिल किया , जो ठीक नहीं | कोर्ट ने कहा , जब तक यूपी श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश पर निर्णय नहीं हो रहा , तब तक एक अस्थायी ट्रस्ट बनाया जाए | कोर्ट ने हाई कोर्ट के पूर्व जज की अध्यक्षता में ट्रस्ट बनाने का सुझाव दिया |
मंदिर निजी नहीं सार्वजनिक आस्था का केंद्र है सेवायतों की ओर से पेश अधिवक्ता श्याम दीवानी ने कहा , मंदिर गोस्वामी परिवारों द्वारा संचालित पारंपरिक निजी मंदिर है | वर्ष 2016 के बाद प्रबंधन समिति के चुनाव नहीं हुए | सरकार बिना पक्षकरों को सुने ट्रस्ट अध्यादेश पास करने मंदिर को नियंत्रण में लेना चाहती है | इस पर कोर्ट ने कहा , मंदिर को निजी कहना ठीक नहीं | लाखों लोग वहां आते हैं | यह सार्वजनिक आस्था का केंद्र है , प्रबंधन निजी हो सकता है | पीठ अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को भी सुनाई करेगा |