भोपाल (सैफुद्दीन सैफ़ी)
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो,जब तोप हो मुकाबिल तो अखबार निकालो। ये शेर अकबर इलाहाबादी ने तब लिखा था जब अंग्रेजी हकूमत में क्रूरता अपने चरम पर थी अकबर इलाहाबादी ने अख़बार को उस वक्त एक बड़ी ताकत के रूप में देखा था। मगर आज भी अकबर इलाहाबादी का ये शेर कम मौजूं नही है खास तौर से छोटे समाचार पत्र निकाल कर अपने शहर और कस्बों में लोकतंत्र की आवाज को बुलंद करने वाले पत्रकारों पर। अब भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक और प्रेस सूचना केंद्र हर साल छोटे समाचारपत्रों के लिए कुछ ऐसे नए नियम और कायदे जबरन थोंपने की कोशिश कर रहा है, जो कही से उचित और सार्थक नही है जिसको लेकर मध्यप्रदेश सहित पूरे देश में पत्रकारों में गुस्सा फूट रहा है।
गौरतलब है कि अप्रैल माह 2025 से आर. एन. आई. और पी आई बी ने प्रकाशित अखवारों की फ़ोटो प्रति को 48 घंटे में समाचारपत्रों के प्रेस पोर्टल पर डेली अपलोड करने की अनिवार्यता का नियम लागू किया है जिसको लेकर देश भर के छोटे समाचार पत्र निकालने वाले पत्रकारों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।
इससे पूर्व में समाचारपत्र प्रकाशन से जुड़े पत्रकार हर माह पी. आई. बी. और संभागीय जनसंपर्क और जनसंपर्क संचालय में अपने प्रकाशित अखबार और पत्रिका नियम अनुसार जमा करते है जब तीन जगह ये जमा करवाये जाते है तो अलग से अखबार मालिकों से प्रेस पोर्टल पर अखबार की फ़ोटो प्रति अपलोड करवाने का बेतुका नियम लागू करना समझ से परे लगता है।
ये नियम बेवजह पत्रकारों को परेशान करने वाला तो है ही साथ ही उनके ऊपर एक मानसिक बोझ लादने वाला है देश भर में 60 प्रतिशत छोटे अखबार के मालिक पत्रकारिता में वन मेन शो की तरह काम करते है खबर भी वो ही लिखते है उसको टाइप भी बाहर से खुद करवाते है फिर प्राइवेट प्रिंटर्स के यहाँ बैठकर अखबार भी छपवाते है और कई बार तो खुद ही बांटते भी है ऐसी हालत में अखबार की प्रति प्रेस पोर्टल पर अपलोड करने का एक काम और उसके ऊपर जबरन थोपा जा रहा है।
सरकार पत्रकारों को क्या क्लर्क बनाना चाहती है? कहा ये भी जा रहा है कि अगर पत्रकार अखबार की प्रति अपलोड नही करेंगे तो पी आई बी जो हर माह प्रकाशित अखवारों की प्रति लेता है वो नही लेगा और ऐसी स्थिति में अखवारों के पंजीकृत टाइटल ब्लॉक कर दिए जाएंगे ऐसा लगता है कि सरकार किसी न किसी तरह छोटे समाचारपत्रों का गला घोंटकर हत्या की साजिश रच रही है। ताकि नियम पालन में असफल पत्रकारों के टाइटल निरस्त कर उनके विज्ञापनोँ के बजट को बड़े अखवारों को दिया जा सके