भोपाल,( कशिश मालवीय ) लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र के मेगा फूड पार्क (एमएफपी) में आयुर्वेदिक दावाओं के निर्माण में गंभीर लापरवाही बरती जा रही है | जिन दो चिकित्सकों कों दवा निर्माण के दौरान निगरानी करने की जिम्मेदारी दी गई है , वे समय पर कार्यालय ही नहीं पहुँच रहे हैं | दोनों डॉक्टर इस समय अपनी क्लीनिक चलाते हैं | ऐसे में कर्मचारी अपने हिसाब से कच्चे माल मिक्सिंग कर दवाएं तैयार करने लगते हैं | दवा में कौन सी औषधि कितनी मात्रा में मिलनी है, इसकी जानकारी भी उन्हें नहीं होती है | इस तरह यहां समय पर निगरानी न होने पर खराब गुणवत्ता की दवा तैयार की जा रही है |
एसएफपी पार्क में दवा निर्माण के समय की जा रही लापरवाही की पड़ताल की तो पता चला कि यहां सुबह से शाम शाम तक आयुर्वेदिक दवाएं तैयार की जाती हैं | अच्छी गुणवत्ता सहित विधिपूर्वक दवा बनाने के लिए प्रोडक्शन में दो डॉक्टरों की भी तैनाती की गई है | एक मैन्यूफैक्चारिंग क्वालिटी कंट्रोलर डॉ. संजय शर्मा तो दूसरे मैनयुफेक्चारिंग केमिस्ट डॉ. विजय सिंह | इनकी निगरानी में ही दवा के कच्चे माल की मिक्सिंग आदि प्रक्रिय होनी चाहिए , लेकिन ये दोनों डॉक्टर ड्यूटि टाइम में एसएफपी पार्क पहुँचते ही नहीं हैं | यह दोनों डॉक्टर दिन में करीब 12 बजे तक खुद की क्लीनिक में बैठकर मरीजों का इलाज करते हैं | ऐसे में कर्मचारी अपने मनमुताबिक तरीके से दवा तैयार करते रहते हैं |
प्रदेशभर के सरकारी अस्पतालों में सप्लाई होती है यहां की दवा
इस पार्क की बनी हुई आयुर्वेदिक दवाइयां प्रदेश के 40 प्रतिशत सरकारी आयुर्वेद अस्पतालों और संजीवनी क्लीनिक तक पहुँच रही हैं | बिना डोकटरों की देखरेख मे तैयार हो रही दवाए कितने असर कारक साबित हो रही है या नहीं ये जांच का विषय हो सकता है।